What is Rights Issue Stock Split Open Offer क्या होता है ?
नमस्कार दोस्तों अगर आप सोचते हैं शेयर बाजार यानी कि सिर्फ शेयर का लेनदेन करना होता है ?, तो आप कुछ हद तक गलत सोच रहे हैं ।
शेयर बाजार में बहुत सारे बातें छुपी होती है, अगर आप उसे सभी बातों को नहीं जानोगे तो आपका नुकसान होने की गारंटी बढ़ जाती है । तो आपने बहुत बार पढ़ा होगा कि XYZ नामक कंपनी ने शेयर का विभाजन कर दिया है और ओपन ऑफर भी घोषित किया है ।
तो आज हम इस आर्टिकल में वही विषय पर बात करने वाले हैं कि, राइट्स इश्यू, शेयर विभाजन और ओपन ऑफर क्या होता है ?
राइट्स इश्यू (Rights Issue) :
राइट्स इश्यू के तहत कंपनी रकम जुटाने के लिए मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर्स जारी करती है । आमतौर पर यह शेयर्स डिस्काउंट यानी मौजूदा भाव से कम भाव पर दिए जाते हैं । और वह शेयर्स किस प्रकार दिए जाते हैं की, शेयर धारकों को उनके पास पहले से मौजूद शेयर्स के अनुपात में ने शेयर्स जारी किए जाते हैं ।
अगर मान लो आपके पास किसी कंपनी के शेयर्स है, और कम्पनी 3:5 में राइट्स इश्यू देने की घोषणा करती है, तो इसका मतलब यह होगा कि उसे कंपनी के हर 5 शेयर पर तीन शेयर खरीदने का अधिकार होगा । और सबसे बेहतरीन बात यह है कि राइट्स इश्यू में जारी शेयर सूचीबद्ध होने के बाद आम शेयरों की तरह खरीदे बेचे जा सकते हैं ।
शेयर विभाजन (Stock Split) :
सबसे पहले हम शेयर विभाजन यानी कि स्टॉक स्प्लिट (Stock Split) क्या है यह देखेंगे ?
तो जब कोई xyz कंपनी अपने Stock Split यानी शेयर को विभाजित करके उसके वैल्यू को कम कर देती है, तो इसे हम शेयर विभाजन या Stock Split कहते है । इस प्रक्रिया के तहत एक शेर को कई शेयरों में विभाजित कर दिया जाता है , जिससे शेयरों का बाजार भाव विभाजन के अनुपात में काम हो जाता है ।
साथ ही उसकी फेस वैल्यू भी उसी अनुपात में कम हो जाती है । जैसे की 10 रुपए Face Value वाले शेयर को कंपनी अगर 5:1 में विभाजित करने की घोषणा करती है और उसका Market Value मतलब बाजार भाव 2,000 रुपए चल रहा हो, तो एक्स स्प्लिट होने के बाद उसके शेयर का भाव लगभग 400 रुपए पर आ जाएगा और उसकी Face Value घटकर 2 रुपए हो जायेगी । आमतौर पर कंपनियां अपने शहरों का कारोबार बढ़ाने के लिए ही शेयर विभाजन (Stock Split) की मदद लेती है ।
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शेयरों की पुनः खरीद (Stock Buy Back) :
प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दो तरीके अपनाते हैं, या तो वे खुले बाजार से धीरे-धीरे अपनी कंपनी के शेयर खरीदने हैं या फिर मौजूदा शेयरधारकों (Stock Holders) को एक खास भाव पर अपने शेयर प्रमोटर को बेचने को कहते हैं ।
दूसरी प्रक्रिया को पुनः खरीद यानी बाय बैक कहा जाता है । बायबैक में प्रमोटर एक खास तारीख तक शेयरधारकों को अपने शेयर बेचने का प्रस्ताव करता है । इससे कंपनी में एक ओर तो प्रमोटर की हिस्सेदारी बढ़ती है । और दूसरी ओर आम जनता की हिस्सेदारी घटती है । और इस प्रक्रिया में भाव सकारात्मक दबाव पड़ता है ।
आमतौर पर बायबैक को कंपनी के लिए काफी अच्छा माना जाता है, क्योंकि इससे पता चलता है कि उसके प्रमोटरों को अपनी योजनाओं और कंपनी के भविष्य पर पूरा भरोसा है ।
ओपन ऑफर (Open Offer) :
यह राइट्स इश्यू की तरह ही किसी कंपनी के लिए रकम जुटाने का एक जरिया है । जिसमें अपने स्टॉक होल्डर को मौजूदा बाजार भाव से कम भाव पर शेयरों की खरीद के लिए प्रस्ताव करती है । राइट्स इश्यू से यह इस महीने में अलग होता है, कि इसमें शेयर धारक राइट्स में मिले शेयरों को तुरंत बाजार में बेच सकते हैं लेकिन ओपन ऑफर में मिले शेयरों को तुरंत नहीं बेचा जा सकता ।
अगर कंपनी का कोई प्रमोटर कंपनी में अपने हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है या कोई गैर प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़कर 15 फ़ीसदी कर देता है या कंपनी में स्टॉक एक्सचेंज से डीलिस्ट होने की स्थिति में ओपन ऑफर लाया जाता है ।
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अब बात करेंगे क्या होता है ओपन ऑफर ?
अगर कंपनी का कोई प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है या कोई गैर प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बड़ा कर 15 फ़ीसदी कर देता है या कंपनी के स्टॉक एक्सचेंज से डीलिस्ट होने की स्थिति में ओपन ऑफर लाया जाता है ।
ओपन ऑफर की घोषणा के लिए क्या क्या शर्ते है ?
ओपन ऑफर पेश करने वाली कंपनी को इसकी सार्वजनिक घोषणा करनी पड़ती है । कंपनी को शेयर की ऑफर कीमत शेयरधारकों से खरीद जाने वाले शेयरों की संख्या, अधिग्रहण का उद्देश, अधिग्रहण करने वाली कंपनी की पहचान, भविष्य की योजनाएं और ओपन ऑफर की अवधि की जानकारी देनी पड़ती है । ऑफर बंद होने के 15 दिन के अंदर कंपनी को शेयरधारकों का शेयरों की कीमतों का भुगतान करना पड़ता है । भुगतान में देरी होने पर कंपनी को शेयरधारकों को भुगतान की रकम पर ब्याज देना पड़ता है ।
ओपन ऑफर और राइट्स इश्यू के बीच में क्या अंतर है ? (Differnce between open offers and Rights Issue) :
राइट्स इश्यू का मकसद फंड जुटाना होता है जबकि ओपन ऑफर में कंपनी या प्रमोटर को रकम खर्च करनी पड़ती है । अक्सर राइट्स इश्यू के तहत शेयर की कीमत के ।
ओपन ऑफर में शेयर की कीमत पिछले 6 महीने की सबसे औसत कीमत के आधार पर तय की जाती है । यहां अक्सर निर्धारित कीमत स्टॉक एक्सचेंज में शेयर की चल रही कीमत के मुकाबले अधिक होती है । कीमत अधिक होने के चलते शेयरधारक अपने शेयर बेचते है । राइट्स इश्यू से अलग ओपन ऑफर के जरिए खरीदे गए शेयरों की ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज में नहीं होती ।
ओपन ऑफर के बाद कंपनी में आम शेयरधारकों की हिस्सेदारी घट जाती है, जब की राइट्स इश्यू के बाद शेयरों की संख्या बढ़ने से कंपनी की हिस्सेदारी घट जाती है । जबकि राइट्स इश्यू के बाद शेयरों की संख्या बढ़ने से कंपनी में आम निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ जाती है ।
महत्त्वपूर्ण : म्युच्युअल फंड और शेयर बाजार निवेश जोखिमों पर आधारीत है । शेयर बाजार में निवेश करने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से सलाह अवश्य लें । किसी भी वित्तीय हानी के लिए Stockstak.com उत्तरदायी नहीं होगा ।
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